आगरा। डॉ. भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय में कई घोटाले हुए हैं। मुझसे मेरे बिलों के भुगतान के लिए कमीशन मांगा गया है। कुलपति पत्रकार वार्ता में बोल रहीं हैं कि विश्वविद्यालय के अधिवक्ता अपने भुगतान के लिए अनुचित दबाव बना रहे हैं। मेरे द्वारा अपनी मेहनत और पैरवी करने वाले केसों का भुगतान मांगा जा रहा है। जिन केसों में मेरे द्वारा पैरवी की गई है उस संबंध में मेरे पास प्रमाण भी हैं। यह कहना है विश्वविद्यालय के विधिक सलाहकार डॉ. अरुण कुमार दीक्षित का। शनिवार को पत्रकार वार्ता कर उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने यह भी कहा कि उनके खिलाफ एफआईआर कराने की साजिश हो रही है।
विश्वविद्यालय के विधिक सलाहकार डॉ. अरुण कुमार दीक्षित के द्वारा विश्वविद्यालय में हो रहे भ्रष्टाचार और बिलों के लिए मांगे जा रहे कमीशन की प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राज भवन में शिकायत की गई है। शिकायत के बाद विश्वविद्यालय से उन्हें कार्यविरत कर दिया गया है। प्रधानमंत्री से की गई शिकायत पर जांच भी बैठ गई है। प्रधानमंत्री कार्यालय से चीफ सेक्रेटरी उत्तर प्रदेश को जांच दी गई है। शनिवार को अरुण कुमार दीक्षित ने पत्रकार वार्ता कर कहा कि पूर्व में इन्हीं भुगतान के लिए राज भवन में शिकायत की गई थी। राज भवन के द्वारा हाईकोर्ट की सेवानिवृत न्यायमूर्ति रंजना पंड्या जी के नेतृत्व में जांच कमेटी बनाई गयी। कमेटी ने मेरे आरोपों को सही पाया। कुलपति प्रोफेसर अशोक मित्तल दोषी पाए गए। अगर मेरे बिल गलत थे तो कमेटी ने मुझे उस समय सही क्यों पाया? मैं गलत था तो मुझे गलत क्यों नहीं पाया गया? तत्कालीन कुलपति ने भी अपना इस्तीफा क्यों दे दिया? उन्ही बिलों के भुगतान और अन्य पेंडिंग के लिए (जो कुलपति प्रोफेसर आशु रानी ने रोके हैं) उनके भुगतान के लिए मेरे द्वारा कुलपति, कुलसचिव को नौ पत्र लिखे गए। कुलपति प्रोफेसर आशु रानी, उप कुलसचिव पवन कुमार, प्रोफेसर राजीव वर्मा, राधिका प्रसाद आदि के द्वारा 30% कमीशन मांगा गया। कमीशन मांगे जाने की राज भवन में शिकायत किए जाने के बाद मुझे कार्यविरत कर दिया गया है। बुधवार को विश्वविद्यालय में अपर मुख्य सचिव राज्यपाल सुधीर एम बोबडे भी आए थे। हैरानी की बात यह है कि जिस प्रोफेसर राजीव वर्मा पर आरोप है उन्होंने ही उनके सामने मेरे लंबित बिलों के संबंध में ब्रीफिंग दी। कार्रवाई से बचने के लिए उन्होंने अपर मुख्य सचिव को भी पूरे तरीके से गुमराह कर दिया।
डॉ. दीक्षित ने कहा कि कुलपति के द्वारा गुरुवार को पत्रकार वार्ता कर कहा गया था कि अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत बिलों पर नियमानुसार कार्रवाई की गई है। उनसे उन मामलों की जानकारी मांगी गई जिनमें उन्होंने विश्वविद्यालय की ओर से पैरवी की हो। साथ ही उनके द्वारा नामित किए जाने से संबंधित सक्षम अधिकारी का कोई आदेश अथवा पत्र भी प्रस्तुत नहीं किया गया। यहां तक की संबंधित याचिकाओं में न्यायालय के आदेशों मैं भी उनका नाम विश्वविद्यालय के अधिवक्ता के रूप में उल्लेखित नहीं है। उन्होंने इस बात पर कहा कि कुलपति ने झूठ बोलकर गुमराह किया है। मेरे पास वह सभी एविडेंस है जिनमें मैंने पैरवी की है। जो उनके 2,74,000 के बिल हैं वह बिल राधिका प्रसाद के द्वारा वेरीफाई भी किए गए हैं। इसके दस्तावेज मेरे पास मौजूद हैं। जबकि कुलपति बोल रही हैं विधि विभाग में कोई रिकॉर्ड ही नहीं है। अधिवक्ता अनुचित दबाव बना रहे हैं। कुलपति ने यह भी कहा है कि अधिवक्ता के द्वारा किए गए कार्य विधि विभाग के संज्ञान में भी नहीं है। मैं इस बात के प्रमाण देने के लिए तैयार हूं कि मैं विश्वविद्यालय के कई केस में पैरवी कर चुका हूं। अगर मैं अपनी बात पर गलत साबित हुआ तो इस्तीफा देने को तैयार हूं लेकिन अगर कुलपति अपनी बात पर गलत साबित हुई तो क्या वह इस्तीफा देंगी? सच्चाई तो यह है कि कुलपति कमीशन मांगने में फंस गई हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय से भी उनके ऊपर जांच बैठा दी गई है। इसके बाद वह अपने बचाव में झूठे बयान दे रही हैं। जांच होने पर सभी चीज स्पष्ट हो जाएंगी। मुझे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री पर पूरा भरोसा है। कुलपति के बारे में अवगत करा दूं उनके ऊपर भ्रष्टाचार के संबंध में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के यहां भी दो परिवाद चल रहे हैं। इसके अलावा लोकायुक्त में भी उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का परिवाद दाखिल है। एक मामले में पूर्व कर्मचारी और एक मामले में वर्तमान कर्मचारी ने ही उन पर रिश्वत मांगने के आरोप लगाए हैं। आखिर इन कुलपति के ऊपर भ्रष्टाचार के इतने आरोप क्यों लग रहे। इनके द्वारा भ्रष्टाचार किया जा रहा है तब ही तो लग रहे होंगे।
जिस डेट में कुलपति नहीं थीं उस डेट के लेटर हेड निरीक्षण में लगाए
अधिवक्ता ने कहा कि कुलपति के द्वारा नेक के निरीक्षण के लिए भी कूट रचित दस्तावेज बनाए गए हैं। यह दस्तावेज मेरे पास उपलब्ध हैं। जिस तिथि में कुलपति प्रोफेसर आशु रानी विश्वविद्यालय की कुलपति नहीं बनाई गई थी उस तिथि में उनके लेटर हेड बन गए। यह नेक के निरीक्षण के लिए भी लगाए गए। उनका एक लेटर 23 सितंबर 2022 और एक लेटर हेड 24 अगस्त का है। जबकि उन्होंने एक अक्टूबर को विश्वविद्यालय में चार्ज लिया है। कुलपति ने नेक को गुमराह करते हुए ए प्लस ग्रेड ले लिया है। मेरे पास कई ऐसे सबूत है जो मैं समय आने पर प्रस्तुत करूंगा जिनमे कुलपति फंस जाएंगी। पत्रकार वार्ता में उन्होंने यह भी कहा कि उनकी हत्या तक की साजिश बनाई जा रही है।
अधिवक्ता के द्वारा गिनाए गए विश्वविद्यालय के हित में किए गए कार्य
उनका कहना है कि सुल्तानगंज की पुलिया कैंपस की जमीन पर भूमाफियाओं ने कब्जा कर लिया था। यह जमीन अरबों रुपए की थी। 1990 से इसका सिविल जज आगरा के यहां वाद चल रहा था। यह विश्वविद्यालय के पक्ष में निर्णीत कराकर मौके पर खड़े होकर भू माफियाओं से यह जमीन मुक्त कराई। करीब 11 करोड रुपए जो यूनिवर्सिटी का खाता कुर्क करके सेल टैक्स विभाग की टीम ले गई थी यह वापस कराए। विश्वविद्यालय के खिलाफ बिजली विभाग ने 58 लाख रुपए की रिकवरी निकाल दी थी जिसको उन्होंने कोर्ट से निरस्त कराया। गोपाल कुंज परिसर में भी सिविल वादों में निर्णय विश्वविद्यालयों के पक्ष में कराए। विश्वविद्यालय से संबंधित चार आर्बिट्रेशन वादों का निर्णय कमर्शियल कोर्ट और जिला जज कोर्ट आगरा से विश्वविद्यालय के पक्ष में कराकर करोड़ों रुपए का लाभ कराया।
बोले विश्वविद्यालय में यह घोटाले हुए समय आने पर साक्ष्यों के साथ खोलूंगा
नेक के नाम पर करोड़ों रुपए का घोटाला। बिना टेंडर प्रक्रिया के करोड़ों रुपए के खरीद परोख्त। आउटसोर्सिंग में घोटाला। मेडिकल परीक्षाओं के मूल्यांकन में घोटाला। केंद्र निर्धारण में घोटाला। निर्माण कार्य में घोटाला। प्रैक्टिकल परीक्षा में घोटाला। रुषा रुष व पीएम रुषा में घोटाला। कार्य परिषद, परीक्षा समिति में कई ऐसे निर्णय जो विधि विरुद्ध, एफीलिएशन में घोटाला, चार्ट स्कैनिंग के नाम पर घोटाला, सॉफ्टवेयर के नाम पर घोटाला, केंद्रीय पुस्तकालय में घोटाला। उनका कहना है इन घोटाला में प्रोफेसर आशु रानी सहित कुछ शिक्षक शामिल हैं। वह इन घोटालों के बारे में समय आने पर मय साक्ष्यों के अवगत कराएंगे