जंगे आजादी में मुसलमानों की रही थी अहम भूमिका-हाजी असरफ अली (एक्स फौजी)
जनपद आगरा मुनीष अल्वी:-जिले के एक अच्छे समाजसेवी एंव सभी धर्मों की इज्जत करने बाले हाजी असरफ अली (एक्स फौजी) कहते हैं कि मुल्क की आजादी के 75 साल गुजर चुके हैं. इन 75 सालों में देश के मुसलमानों ने कई उतार-चढ़ाव भरे दौर देखें और कई चुनौतियों का सामना भी किया है. इसके बावजूद मुसलमानों के अन्दर एक बेहतर जिन्दगी की उम्मीद की लौ हमेशा जलती रही और उनकी आंखों में इसका ख्वाब सजता रहा है. आजादी के इतने अरसे बाद आज देश का मुसलमान कहां और किस हालत में खड़ा है.
वो कहते हैं कि मुसलमान देश की आजादी से लेकर सांस्कृतिक और सामाजिक प्रत्येक रूप में भागीदार रहा है. इसके पीछे की वजह देश में धर्मनिरपेक्षता और मिलीजुली तहजीब पर उनका भरोसा है. संविधान भी उसी तहजीब के तहत बना, जिसमें सभी समाज को बराबरी दी गई.
पिछले कुछ सालों में दक्षिणपंथी ताकतों का प्रभाव बढ़ने से देश की इस विरासत पर भी खतरे बढ़े हैं. इन 75 सालों में मुसलमानों के आर्थिक हालात सुधरने के साथ-साथ पंचायतीराज में भी उनका प्रतिनिधित्व बढ़ा है. जो दूसरे समाज में मुसलमानों के प्रति ईर्ष्या की वजह बनी।
हाजी जी कहते हैं कि मुसलमानों के सामने बहुत नाजुक दौर है, ऐसे में उसे आत्मचिंतन करना चाहिए. रूढ़िवादी सोच से ऊपर उठकर प्रोग्रेसिव सोच के साथ आगे आना होगा. इतना ही नहीं एक आम नागरिक की तरह खामोशी से अपनी पसंद की पार्टी को वोट करें, लेकिन सवाल सभी पार्टियों से करें, केवल बीजेपी से ही नहीं. इसके अलावा देश के मुसलमानों को देश के बाकी समाज के साथ मिलकर अपने मुद्दे उठाने चाहिए. शाहबानों जैसे रूढ़ीवादी मुद्दे पर एकजुट होने के बजाए ठोस आर्थिक मुद्दों पर एकजुट हों. किसानों की समस्या ,विकास के मुद्दे और सामाजिक न्याय की लड़ाई में बराबरी से खड़े हों.
वो कहते हैं कि आजादी के 75 साल के बाद भी देश के मुसलमानों को अपनी राष्ट्रभक्ति का सबूत देना पड़ता है. जबकि देश की आजादी में सबसे ज्यादा कुर्बानियां मुसलमानों ने ही दी हैं. इसके बावजूद हमारी वफादारी पर शक किया जाता रहा है. मौजूदा दौर में मुसलमानों की धार्मिक आजादी को टारगेट किया जा रहा है, कभी तीन तलाक, तो कभी अन्य कानून. इतना ही नहीं मदरसों को निशाना बनाया जा रहा है. ऐसे में आजादी के मायने नहीं रह जाते हैं.।